हाय राम ! ~ रचनाकार : जॉनी शाह (વિશ્વ રંગભૂમિ દિવસ નિમિત્તે એક નાની કટાક્ષિકા)
(વિશ્વ રંગભૂમિના દિવસે, રંગમંચને પણ ઝાંખો પાડે એવું નાટક મહારાષ્ટ્રના રાજકારણમાં ભજવાઈ રહ્યું છે. તેની વ્યથા વ્યક્ત કરતું એક કાવ્ય પ્રસ્તુત છે.)
अब सच में ही डर लगता है।
हर कोई लुटेरा दिखता है।
हमने तो स्थापित राम किए,
हाय राम! उनमें भी रावण मिलता है।
धृतराष्ट्र से सब अवगत है,
पर संजय अंध बन बैठा है ।
तुम आग की बातें करते हो?
तुमको भी खा़क में मिलना है।
कितने वृक्ष उखाड़ोगे?
मिट्टी की हाय भी लगती है।
यहाँ एक दिशा सुशांत हुई,
हर दिशा से लौ सुलगती है।
कितने मुर्दे गाड़ोगे?
कंकाल नजर आ जाते हैं।
सत्ता का व्यर्थ गुमान ना कर,
सत्ता तो आनी-जानी है।
तुम राजा हो, पालनहार बनो।
क्युं घ्वंस की बातें करते हो ?
विध्वंस की बातें करते हो ?
तलवार तुम्हारे पास सही,
हम शंख, सुदर्शनधारी है ।
( रचनाकार : जॉनी शाह )
बहुत ही बढ़िया मिठी आवाज
बहुत बढ़ियाँ🙏💐
કથા માં વ્યથા.!